लेखनी कविता -08-Aug-2024
शीर्षक - चमक
जिंदगी में चमक चाहते हैं। हां सुंदरता और कुदरत हैं। बस फूलों के साथ हम हैं। मानव की सोच होती हैं। स्वार्थ और फरेब का मन है। फूल तो निःस्वार्थ भाव हैं। ईश्वर को या स्वयं चढ़ाते हैं। कुदरत का नाम अंत होता हैं। खाली हाथ ही सदा जाना हैं। सोच अपने पराएं की होती हैं। सच तो जीवन भी फूल ही हैं। बस यहां मन भाव हमारे होते हैं। कहीं न कहीं हम कहां होते हैं। फूल की भी अपनी इच्छा कहां हैं। मानव खरीद तोड़ अपने मन की करता हैं। बस यहीं हम फ़ूल के साथ होते हैं।
नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र
Arti khamborkar
21-Sep-2024 09:25 AM
v nice
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